श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा   “रुक  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  #36 ☆

☆ लघुकथा – रुक ☆

 

रघु अपनी पत्नी को सहारा देते हुए बोला. ” धनिया ! थोड़ी हिम्मत और कर. अस्पताल थोड़ी दूर है. अभी पहुच जाते है.” मगर धनिया की हिम्मत जवाब दे चुकी थी. वह लटक गई.

रामू और सीता अपनी अम्मा का हाथ पकडे हुए चल रहे थे.

इधर धनिया गश खा कर गिर पड़ी. यह देख कर रघु घबरा गया. इधरउधर देख कर बोला ,” बस धनिया ! थोड़ी देर और रुक जा. हम अस्पताल पहुँचने वाले है.” मगर धनिया का समय आ गया था. वह हाफाने लगी.

“रामू – सीता, तुम अम्मा को सम्हालना. मैं अभी अम्बुलेंस ले कर आता हूँ.” कह कर रघु ने इधरउधर सहायता के लिए पुकारा और फिर अस्पताल की ओर  भाग गया.

इधर धनिया भी चुपचाप चली गई और बच्चे माँ को चुपचाप देख कर रोने लगे.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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