श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है विश्व कविता दिवस परआपकी भावप्रवण कविता “शायद वो कविता कहलाई होगी”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 172 ☆
☆ # विश्व कविता दिवस विशेष – “शायद वो कविता कहलाई होगी” # ☆
हिमखंड जब प्रखर तापसे
टूटकर पिघले होंगे
बर्फ से जल के फौवारे
चारों तरफ निकले होंगे
बर्फ की चट्टानो को चिरकर
जल के धारों को मोड़कर
जल की धारा बहते बहते
अवरोधों को सहते सहते
कहीं कुंड, कहीं झरना
कहीं जलाशय, कहीं नदी
कहलाई होगी
तभी जल के नाद में डूबकर
प्रवाह के गीत बनकर
कोई रचना बन पाई होगी
शायद वो कविता कहलाई होगी
वर्षा के रुत में, तपते देह से बुत में
काले काले मेघ, गर्जना करते मेघ
प्रचंड गर्जना से
गिराते चपल तड़ित
शांत वातावरण को कर खंडीत
वर्षा की बूंदें,
पृथ्वी पर है सब आंखें मूंदे
तपते देह को भिगोती होगी
हृदय में आग लगाती होगी
तब अनायास ही
हर देह से
वर्षा से नेह से
जब प्रित लगाई होगी
शायद वो कविता कहलाई होगी
सावन के झूलों में
फूलों के मेलों में
झूलती तरूणाई
ले मदमस्त अंगड़ाई
आसमान को छुती हुई
सावन के गीत गाती हुई
प्रियतम को याद कर
मेघों से फरियाद कर
श्रृंगार कर लज्जा ती होगी
रसिक प्रेमी को बुलाती होगी
इनके फुहारों में मिलन से
जो रसधार बहाई होगी
शायद वो कविता कहलाई होगी
तपे हुए लोहे पर मारता घन
जलते कोयले सा जलता मन
पसीने से तरबतर शरीर
आंखों के कोने में
छुपे हुए नीर
अंग अंग पर जलने के दाग़
पेट में जलती जन्मोंकी आग
बढ़ती मंहगाई बेहिसाब
रूखी रोटी संग प्याज
जब पानी पिकर
भूख मिटाई होगी
फिर उसने जो
धुन गुनगुनाई होगी
शायद वो कविता कहलाई होगी
जब सर पर ना हो किसी का साया
चिथड़ों में लिपटी हुई हो काया
गिद्ध सी घूरती हुई नज़रें
सुनती हर पल छींटों के कतरें
दूर कमाने गया है मालक
छाती से लिपटा हुआ है बालक
सुखे स्तन से दूध चूसता है
दूध ना आने पर वो रूसता है
उसका रूदन मां को रूलाता है
मां के नयनों से आंसू बहाता है
भूखें पेट बच्चे को, मां ने जो
लोरी सुनाकर सुलाई होगी
शायद वो कविता कहलाई होगी
उसकी लगन में
अपनी ही मगन में
घूमता हुआ फकीर
खैर मांगता जैसे कबीर
उसका अलख जगाते हुए
प्रित की ज्योति जलाते हुए
भेदभाव को मीटाकर
सबको अपने गले लगाकर
रंगता सबको उसके रंग में
लौ लगाता अंग अंग में
सब कर्मकांडों को तोड़कर
परमात्मा से हाथ जोड़कर
जो प्रार्थना उसने गाई होगी
शायद वो कविता कहलाई होगी/
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
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