हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 23 – तिलस्म ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले
श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना ‘तिलस्म ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ तिलस्म ☆
वो तब भी था उसके साथ जब था वह कोसों कोसों दूर
था वह दुनियाँ की किसी खुशनुमा महफ़िल में
हो रही थी जब फ़ला फ़ला बातें फ़ला फ़ला शख़्स की
तब भी भीतर छुप किसी कोनें से वह कर रहा था उससे गुफ़्तगू
वह हो रहा था जाहिर जो कि एक तिलस्म था
वह हिला रहा था सर पर मौन था
वह दिख रहा था दृश्य में पर अदृश्य था
सब देख रहे थे देह उसकी पर आत्मा नदारद थी
वह दिख रहा था मशरूफ़ पर अकेला था
वह प्रेम का एक बिंदु था
बिंदु जो कि सिलसिलेवार था
वह पहुँचा प्रकाश की गति से
प्रेमिका के मानस में
बिंदु जो अब पूर्णविराम था
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र