स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – गीत यह तुमको समर्पित…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 184 – सुमित्र के गीत… गीत यह तुमको समर्पित
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गीत यह तुमको समर्पित
किन्तु मुख से कह न पाऊँ
डर यही मन में समाया
आँख से ही गिर न जाऊँ ।
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आँख से गिरना उतरना
यह पुराना सिलसिला है
आँख में अपनी रखे जो
वह कहाँ किसको मिल हैं
कौन आँखों में बसा है, अब किऐ कैसे बताऊँ ।
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समर्पण का अर्थ केवल
धन नहीं है, तन नहीं है
वही उल्टा सोचते हैं
पास जिनके मन नही है
कौन मन से मन मिलाये, किसे बरबस खींच लाऊँ।
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जानता हूँ जानता
थरथराने से लगे हो
तुम पराया भले मानो
जन्मजन्मों के सगे हो
भावना से अधिक क्या है, खोलकर अंतर दिखाऊँ।
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एक लम्बी प्रतीक्षा ने
आंसुओं से भर दिया है
रेतवन सी जिन्दगी को
मधुबनी सा कर दिया है
शक्ति इतनी सिमट आई, कहो तारे तोड़ लाऊँ ?
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
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