श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “आदमी सूरजमुखी सा…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #226 ☆
☆ आदमी सूरजमुखी सा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
☆
हवाओं के साथ, रुख बदला नया है
आदमी, सूरजमुखी सा हो गया है।
*
दोष देने में लगे हैं, खेत को ही
घून खाए बीज, कोई बो गया है।
*
सोचना, नीति-अनीति व्यर्थ है अब
संस्कृति संस्कार घर में खो गया है।
*
संयमित हो कर, घरों में ही रहें
खिड़कियों के काँच मौसम धो गया है।
*
सियासत का फेर, कारागार में
बढ़ गई बेशर्मियाँ, जो भी गया है।
*
फेन, फ्रिज, कूलर, सभी चालु तो है
कौन सा भय फिर कमीज भिगो गया है।
*
अब बचा नहीं पाएँगे, मन्तर उसे
रात उसकी छत पे उल्लू रो गया है।
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈