सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – कर्मों की गीता…।
रचना संसार # 3 – नवगीत – कर्मों की गीता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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चौसर की यह चाल नहीं है,
नहीं रकम के दाँव।
अपनापन है घर- आँगन में,
लगे मनोहर गाँव।।
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खेलें बच्चे गिल्ली डंडे,
चलती रहे गुलेल।
भेदभाव का नहीं प्रदूषण,
चले मेल की रेल।।
मित्र सुदामा जैसे मिलते,
हो यदि उत्तम ठाँव।
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जीवित हैं संस्कार अभी तक,
रिश्तों का है मान।
वृद्धाश्रम का नाम नहीं है
यही निराली शान।।
मानवता से हृदय भरा है,
नहीं लोभ की काँव।
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घर-घर बिजली पानी देखो,
हरिक दिवस त्योहार।
कूके कोयल अमराई में,
बजता प्रेम सितार।।
कर्मों की गीता हैं पढ़ते,
गहे सत्य की छाँव।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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