डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 228 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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मानुस गर्व न कीजियो, ऐसो कहत कबीर
कैसी विपदा आ पड़े, बनी जाये फ़क़ीर।
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हरि को भजना है हमें, हरि ही करे निदान।
हरि से मिलता है हमें, जीवन का वरदान ।
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कभी प्रेम की बांसुरी, कभी सुरों का राग।
कभी पिया की रागनी, जीने का अनुराग ।
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ब्रम्ह आपके शब्द हुए,अर्थ हुई तक़दीर।
वाक्य बनकर बस गए,दिल के हुये अमीर।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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