आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – मतदान।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 183 ☆
☆ सॉनेट – मतदान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
(अभिनव प्रयोग)
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मत मत दें सोच-विचार बिना,
मत दें कर सोच-विचार घना,
मत-दान न कर मतदान करें,
मतिवान बनें, शुभ सदा वरें।
दें दाम नहीं, लें दाम नहीं,
मत डर मत दें, विधि वाम नहीं
मत जाति-धर्म आधार बने,
मत आँगन में दीवार तने।
दल के दलदल से दूर रहें,
मत आँखें रहते सूर रहें,
मत दें शिक्षित सज्जन जन को
मत मत दें लुच्चे-दुर्जन को।
मतदाता बनकर शीश तने
नव भारत की नव नींव बने।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१९.४.२०२४
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