श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता – “आकार रोटी का”।)
☆ कविता– “आकार रोटी का” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
फ़सल कट चुकी थी,
रात भर गेहूं की बालें
भूसा बनके उड़तीं रहीं
थ्रेसर मशीन के पेट से,
रोटी के आकार का चांद
हंसता रहा भूख के भूगोल पर
हंसिया चला था
जब गेहूं के गले पर
उसी वक्त से गेहूं
व्याकुल हो उठा था
अपनी मिट्टी से मिलने,
रंगा बिल्ला बेदर्दी से
घुसेड़ते रहे गुच्छे गेहूं के
मशीन के भूखे पेट में
रोटी जैसे चांद को देखकर
ऊंघता रहा अघोरीलाल
बार बार भूसे के ढेर पर,
अघोरीलाल का घुसा पेट
भूख से कुलबुला रहा था
चमकते चांद को देखकर
मशीन खाए जा रही थी
गेहूं के अनगिनत बोझे
मशीन से भूसा उड़ उडकर
लिपट रहा है उसी मिट्टी में
जिस जमीन पर अंकुरित
हुईं थीं ये गेहूं की बालें
पास ही भैंस उत्सुकता से
भूसे के ढेर को देखकर
खुशी के आंसू टपका रही थी
और थ्रेसर मशीन को देखकर
पेट भर दुआ दे रही थी
चरवाहा निश्चिंत होकर
पेड़ के तने से टिक कर
आंखें मूंदे गाए जा रहा था
मशीन से गिरते गेहूं देखकर
हंस देता था रोटी के आकार पर
© जय प्रकाश पाण्डेय
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