डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा जी की एक विचारणीय कविता “मछलियों को कायदे से….”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 36 ☆
☆ मछलियों को कायदे से…. ☆
आजकल वे सेमीनारों में
हुनर दिखला रहे हैं
मछलियों को कायदे से
तैरना सिखला रहे हैं।
अकर्मण्य उछाल भरते मेंढकों से
‘जम्प’ कैसे लें, इसे सब जान लें
और कछुओं से रहें अंतर्मुखी तो
आहटें खतरों की तब पहचान लें।
मगरमच्छ नृशंष,
लक्षित प्राणियों को मार कर
हर्षित हृदय से निडर हो
जो खा रहे हैं। मछलियों को कायदे………
वे सतह पर अंगवश्त्रों से सुसज्जित
किंतु गहरे में रहे बिन आवरण है
वे बगूलों से, सफेदी में छिपाए
कालिखें, कल्मष, कुटेवी आचरण है।
साधनों के बीच में
लेकर हिलोरें झूमते वे
साधना औ’ सादगी के
भक्ति गान सुना रहे है। मछलियों को कायदे………..
कर रहे हैं मंत्रणा मक्कार मिलकर
हवा, पानी, पेड़-पौधे, खेत, फसलें
हों नियंत्रण में, सभी इनके रहम पर
बेबसी, लाचारियों से ग्रसित नस्लें।
योजनाएं योजनों हैं दूर
अंतिम आदमी से
चोर अब आयोजनों में
नीतिशास्त्र पढ़ा रहे हैं।
मछलियों को कायदे से
तैरना सिखला रहे हैं।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 989326601