स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – मन का केनवास…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 188 – मन का केनवास…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य))
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मन के
कैनवास पर
चित्रित हो तुम
मौनमुखी माधवी।
मोनालिसा की
अबूझ
मुस्कान
की तरह।
आखिर
कौन सा रहस्य है।
तुम्हारे अंतः में
माधवी ।
कौन सी विवशता थी
तुम्हारी?
क्या थे
तुम्हारे
व
इच्छा
आकांक्षा
महत्वाकांक्षा?
क्या है
ऋषि द्वारा
तुम्हें दिये गये
अक्षत कौमार्य
के वरदान का
रहस्य?
वरदान
सत्य था
या भ्रम?
या प्रतिष्ठा का कवच !
यातत्कालीन सामाजिक संरचना का
तथ्य ?
जो भी हो
मुझे लगता है
अब तक चल रहा है
वरदानों
और विवशताओं का क्रम !
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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