डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता “दो किनारे “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 36 – साहित्य निकुंज ☆
☆ दो किनारे ☆
है ये जिंदगी के दो किनारे
साथ है प्रकृति के नजारे
बढ़ते जा रहे हैं गंतव्य की ओर।
मिलन की है, आतुर प्रतीक्षा
मिलन नहीं, है उनकी परीक्षा
होता है दुःख
पर है साथ रहने का सुख।
चाहते है ठहराव
पर
मिलेगी नहीं ठांव
प्रकृति है इसकी गवाह
ये पर्वत श्रृंखलाएं
दे रही है प्यार का संदेश
हरे भरे वृक्ष
और ये फिजाएं
मान रहे आदेश
चल रहे है सभी
एक ही दिशा
है सिर्फ यही आशा
कभी तो मिलेंगे किनारे
होंगे एक दूजे के सहारे।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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