सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार।आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – संस्मरण – एक और गौरा।)
मेरी डायरी के पन्ने से # 10 – संस्मरण # 4 – एक और गौरा
श्रावणी मासी मोहल्ले भर में प्रसिद्ध थीं। सबके साथ उठना – बैठना, सुख-दुख में पास आकर सहारा देना उनका स्वभाव था। स्नान के बाद सिर पर एक गमछा बाँधकर वह दिन में एक दो परिवारों का हालचाल ज़रूर पूछ आतीं पर एक बात उनकी ख़ास थीं कि वे स्वयं कभी किसी से किसी प्रकार की चर्चा न करतीं,यहाँ का वहाँ न करतीं जिस कारण सभी अपनी पारिवारिक समस्याएँ उनके सामने रखते।
वे किसी से सहायता की अपेक्षा कभी नहीं रखतीं थीं। वे स्वयं सक्षम, समर्थ और साहसी महिला थीं। निरक्षर थीं वे पर अनुभवों का भंडार थीं। समझदार बुद्धिमती तथा सकारात्मक दृष्टिकोण रखनेवाली स्त्री।
किसी ज़माने में जब हमारा शहर इतना फैला न था तो नारायण मौसाजी ने सस्ते में ज़मीन खरीद ली थी और एक पक्का मकान खड़ा कर लिया था। घर के आगे – पीछे खूब ख़ाली ज़मीन थी। श्रावणी मासी आज भी खूब रोज़मर्रा लगनेवाली सब्ज़ियांँ अपने बंगले के पिछवाड़े वाली उपजाऊ भूमि पर उगाती हैं। उन सब्ज़ियों का स्वाद हम मोहल्लेवाले भी लेते हैं। अपने तीनों बेटों के हर जन्मदिन पर वे पेड़ लगवाती, पर्यावरण से बच्चों को अवगत करातीं। आज उनके जवान बच्चों के साथ वृक्ष भी फलदार हो गए। आम,जामुन,अनार,अमरूद,सीताफल, पपीता , कटहल, कदली , चीकू , सहजन के पेड़ लगे हैं उनके बगीचे में। खूब फल लगते और मोहल्ले में बँटते हैं। आर्गेनिक फल और सब्जियाँ! पीपल, अमलतास , गुलमोहर वट, नीम के भी वृक्ष लगे हैं। हम सबके बच्चों ने पेड़ पर चढ़ना भी यहीं पर तो सीखा है।
अब शहर बड़ा हो गया, चारों ओर ऊँची इमारतें तन गईं, और उनके बीच श्रावणी मासीजी का बंगला पेड़ – पौधों से भरा हुआ खूब अच्छा दिखता है। कई बिल्डरों ने कई प्रलोभन दिए पर मासीजी का मन न ललचाया।
अब तीनों बेटे ब्याहे गए । घर में खूब हलचल है। बेटे भी सब पर्यावरण के क्षेत्र में काम करते हैं। पूरा परिवार प्रसन्न है।
अचानक सुनने में आया कि मासी जी के घर बछड़ा समेत एक सफ़ेद गाय लाई गई। गोठ बनाई गई , उसकी सेवा के लिए एक ग्वाला नियुक्त किया गया। अब हम सबको दही, घी, मट्ठ़े का भी प्रसाद मिलने लगा।
बार – बार सबके पूछने पर कि मासीजी को गाय खरीदने की जरूरत क्यों पड़ी भला! आज के आधुनिक युग में भी भला कोई गाय पालता है! कितनी गंदगी होगी, बुढ़ापे में काम बढ़ेगा कैसे संभालेंगी वे ये सब!
एक दिन श्रावणी मासी जी ने यह कहकर सबका मुँह बंद करवा दिया कि, अब तक आप सब आर्गेनिक सब्ज़ियों और फलों का आनंद लेते रहे । अब अपनी आनेवाली अगली पीढ़ी को भी शुद्ध दूध-दही,छाछ- मट्ठ़ा और घी- मक्खन खाकर पालेंगी।
आल आर्गेनिक थिंग्स। दूध भी आर्गेनिक,। हम सब मासीजी की बात पर हँस पड़े।
वे बोलीं, मेरी दो बहुएँ गर्भ से हैं। ये व्यवस्था उनके लिए है।आनेवाली पीढ़ी शुद्ध वस्तुओं के सेवन से स्वस्थ, ताकतवर बनेगी। इसकी शुरुआत मैं अब आनेवाले मेरे पोते-पोतियों से करती हूँ। श्रावणी मासी जी की दूरदृष्टि को सलाम।
मुझे महादेवी वर्मा जी की ‘ गौरा ‘ याद आ गई। जो किसी की ईर्ष्या का शिकार हो गई थी और तड़पकर मृत्यु मुखी हुई। और यहाँ आज एक गाय अपने बछड़े समेत खूब देख- भाल और सेवा पा रही है। बछड़े का भी भविष्य उज्जवल है और आनेवाली पीढ़ी का भी। दोनों तंदरुस्त होंगे।
© सुश्री ऋता सिंह
फोन नं 9822188517
ईमेल आई डी – ritanani[email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈