श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “अब गुलाब में केवल काँटे…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #229 ☆

☆ अब गुलाब में केवल काँटे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बातें अपनी

कुछ जन-मन की

किससे कहें, सुनें

विचलन की।।

 

नित नूतन आडंबर लादे

घूम रहे राजा के प्यादे

गुटर गुटर गू करे कबूतर

गिद्ध अभय के करते वादे,

बात शहर में

बीहड़ वन की।…

 

सपनों में रेशम सी बातें

करते हैं छिपकर फिर घातें

ये बेचैन, विवश है रोटी

वे खा-खा कर, नहीं अघाते,

बातें भूले

अपनेपन की।……

 

अब गुलाब में केवल काँटे

फूल, परस्पर खुद में बाँटे

गेंदा, चंपा, जूही, मोगरा

इनको है मौसम के चाँटे,

 रौनक नहीं रही

 उपवन की।……,

 

है,अपनों के बीच दीवारें

सद्भावों के नकली नारे

कानों में मिश्री रस घोले

मिले स्वाद किंतु बस खारे

कब्रों से हुँकार

गगन की।….

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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