श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – खूब चाहा छिपाना दर्द को…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 214 ☆
☆ एक पूर्णिका – खूब चाहा छिपाना दर्द को… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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जख्म दिल के दिखाये न गये
राज दिल के बताये न गये
*
गीत लिक्खे प्यार के हमने
अफसोस पर सुनाये न गये
*
इस तरह मगरूर थी खुद में
रिश्ते प्यार के निभाए न गये
*
खूब चाहा छिपाना दर्द को
चाह कर भी छिपाये न गये
*
सोचा मिटा दें निशां प्यार के
पर मुश्किल है मिटाए न गये
*
है खुदा की नेमत प्यार भी
लब्ज़ ये उनसे जताये न गये
*
दिल में “संतोष” आस आँखों में
कभी हमसे भुलाये न गये
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
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