श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है जीवन के कटु सत्य को उकेरती एक संवेदनात्मक एवं विचारणीय लघुकथा “मृग मरीचिका”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 193 ☆
🌻मृग मरीचिका🌻
भीषण गर्मी में तपती दोपहरी को लंबी दूरी तय करते समय दूर देखने पर ऐसा लगता है मानो पानी भरा हुआ है।
इसे मृग मरीचिका कहते हैं या यूँ कह लीजिए आँखों का धोखा।
गर्मी में जहाँ चारों तरफ सिर्फ गर्म हवा लू चल रही हो वहाँ पर अचानक जल प्रवाह दिखना आँखों का धोखा होता है। क्षणिक मात्र के लिए ही सही परंतु यह बड़ा सुखद होता है।
अखबार को सीने से लगाए बैठा दीनदयाल मन ही मन आनंदित हो रहा था। जिसमें पूरे परिवार की तस्वीर छपी है।
बुजुर्ग घर परिवार की धरोहर होते हैं। बदलती परिभाषा को अपने लिए बनते मृग मरीचिका को, परंतु उसे आज अच्छा लग रहा था। आँखों का धोखा ही सही। आत्मा को बहुत सुकून पहुंचा रही थी।
दीनदयाल वृद्धावस्था के चलते सभी बातों से लाचार हो चुके थे। धर्मपत्नी भी समय होते-होते साथ छोड़ चली गई थी। आज वह चुपचाप देख रहा था कि उसे बेटे-बहु ने बहुत ही सुंदर-सुंदर बातें करके कुछ अच्छा सा कपड़ा पहनाया। साथ ही बोल रहे थे… कुछ पेपर वाले आएंगे हमारे घर परिवार का फोटो छपेगा।
जैसा बोल रहे हैं ठीक वैसा ही आपको कहना है। कुछ भी ज्यादा नहीं कहना है। अन्यथा वृद्धा आश्रम में पहुंचा दिए जाओगे। बेटे के कहे शब्द कानों में चुभ रहे थे।
बस उसी समय बेटे ने लगभग पेपर खींचते हुए बोला… अच्छा हुआ पिताजी आपने सब बहुत सुंदर बोला और जैसा ही कहा था, वैसा ही किया।
देखिए पेपर में बहुत सुंदर छपा है। सारे दोस्त और परिचित बधाई दे रहे हैं। दीनदयाल ने धीरे से कहा.. भीषण गर्मी में बेटा मृग मरीचिका आँखों को बहुत राहत देती है।
पीछे से बहू ने आवाज लगाई… अब बोलने दीजिए जो बोलना है कौन सुनता है। बस सोसाइटी में अपना नाम हो गया। दीनदयाल चुपचाप अपनी कमीज की बाजू से आँसू पोंछते पानी पीने लगे।
☆
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈