डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘हद‘। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 141 ☆
☆ लघुकथा – हद ? ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
मीता ने तेजी से काम निपटाते हुए पति से कहा – ‘रवि ! तुम्हारे फोन पर यह किसके मैसेज आते हैं ? कई दिनों से देख रही हूँ तुम रोज मैसेज पढ़कर हटा देते हो।‘
‘मेरे साथ ऑफिस में काम करती है मारिया। बेचारी अकेली है, तलाक हो गया है बच्चे भी नहीं हैं। उसकी मदद करता रहता हूँ बस।‘
‘पक्का और कुछ नहीं ना?’
‘नहीं यार, बहुत शक्की औरत हो तुम।‘
‘पर उसके मैसेज हटा क्यों देते हो ?’
‘यूँ ही, अपने सुख दुख की बात करती रहती है बेचारी। तुम तो जानती हो मेरा स्वभाव, मदद करता रहता हूँ सबकी।‘
‘मेरे ऑफिस में भी हैं एक मिस्टर वर्मा, बेचारे अकेले हैं। मैं भी उनकी मदद कर दिया करूंगी।’
‘कोई जरूरत नहीं, हद में रहो —-?’
© डॉ. ऋचा शर्मा
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