प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “अभी भी बहुत शेष है” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘अनुगुंजन’ से – अभी भी बहुत शेष है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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मंजिले पार करते हुये नित नई जिंदगी आज इस ठौर तक आ गई ।
राह फिर भी अभी भी बहुत शेष है इन चरण के चिरन्तन चलन के लिये ।। १ ।।
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राह में मोड़ आये, चौराहे मिले कई उतारों-चढ़ावों के भी सिलसिले ।
कुछ तो सीखा है, फिर भी बहुत शेष है मौन मन के निरन्तर मनन के लिये ।। २ ।।
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सड़कें चिकनी औ’ चौड़ी चमकदार हैं फिर भी कचरों औ’कांटों के अम्बार हैं।
रोशनी कम अँधेरा बहुत शेष है दूर करने अभी भी, किरण के लिये ।। ३ ।।
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आये दिन सुख के नये लाखों साधन बने लोग फिर भी हैं सहमें, डरे अनमने ।
सीखना सबको अब भी बहुत शेष है रीति नई. प्रीति के आचरण के लिये ।। 8 ।।
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पर लगा, आदमी बहुत उड़ने लगा छोड़ धरती सितारों से जुड़ने लगा ।
पर समझना सभी को बहुत शेष है यह धरा ही है जीवन मरण के लिये ।। ५ ।।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈