हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #6 – खुशी की तलाश ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज छठवीं कड़ी में प्रस्तुत है “खुशी की तलाश”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

Amazon Link for eBook :  सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 6 ☆

☆ खुशी की तलाश ☆

 

नया साल आ गया, हमने पार्टियां मनाई, एक दूसरे को बधाई दी  नये संकल्प लिये, अपनी पुरानी उपलब्धियो का मूल्यांकन और समीक्षा भी की. खुशियाँ मनाई. दरअसल हम सब हर पल खुशी की तलाश में व्यथित हैं. खुशी की तलाश के संदर्भ में यहाँ एक दृष्टांत दोहराने और चिंतन मनन करने योग्य है. एक जंगल में एक कौआ सुख चैन से रह रहा था. एक बार उड़ते हुये उसे एक सरोवर में हंस दिखा, वह हंस के धवल शरीर को देखकर बहुत प्रभावित हुआ. उसे लगा कि वह इतना काला क्यो है ? कौआ हीन भावना से ग्रस्त हो गया. उसे लगा कि धवल पंखी हंस सबसे अधिक सुखी है. कौए ने हंस से जाकर अपने मन की बात कही, तो हंस ने जवाब दिया कि मित्र तुम सही कह रहे हो मैं स्वयं भी अपने आप को सबसे अधिक भाग्यशाली और सुखी मानता था पर कल जब मैने तोते को देखा तो मुझे लगा कि मेरे पंखो का तो केवल एक ही रंग है वह भी सफेद, जबकि तोता कितना सुखी पंछी है उसके पास तो लाल और हरा दोनो रंग हैं, और वह मधुर आवाज में बोल भी सकता है. जब से मैं तोते से मिला हूँ मुझे लगने लगा है कि तोता मुझसे कही ज्यादा भाग्यशाली और सुखी पक्षी है. हंस के मुँह से ऐसी बातें सुनकर कौआ तोते के पास जा पहुँचा और उससे सारी कथा कह सुनाई. तोते ने कौए से कहा कि यह तो ठीक है पर सच यह है कि मैं बहुत दुखी हूँ क्योंकि कल ही मेरी मुलाकात मोर से हुई थी और उसे देखकर मुझे लगता है कि भगवान ने मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है, मुझे केवल दो ही रंग दिये हैं जबकि मोर तो सतरंगा है, वह सुंदर नृत्य भी कर पाता है. तोते से यह जानकर कि वह भी सुखी नहीं है, कौआ बड़ा व्यथित हुआ, उसने मोर से मिलने की ठानी. वह मोर से मिलने पास के चिड़ियाघर जा पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि मोर बच्चो की भीड़ से घिरा हुआ था, उसे देखकर सभी बहुत प्रसन्न हो रहे थे. कौ॓ए ने मन ही मन सोचा कि वास्तव में मोर से सुखी और कोई दूसरा पक्षी हो ही नहीं सकता. वह सोचने लगा कि  काश उसके पास भी मोर की तरह सतरंगे पंख होते तो वह कितना सुखी होता. जब मोर के पिंजड़े के पास से लोगों की भीड़ समाप्त हुई तो कौआ मोर के पास जा पहुँचा और उसने मोर को अपनी पूरी कथा सुना डाली कि कैसे वह हंस से मिला फिर तोते से और अब खुशी की तलाश में उस तक पहुँचा है. कौए की बातें सुनने के बाद मोर ने उससे कहा मैं सोचा करता था कि सचमुच मैं ही सबसे सुंदर और सुखी पक्षी हूं, पर जब मुझे कल मौका मिला तो मैने सारे चिड़ियाघर का निरीक्षण किया. मैने देखा कि यहाँ हर पक्षी छोटे या बड़े पिंजड़े में कैद करके रखा गया है. मेरी सुंदरता ही मेरी दुश्मन बन गई है और मैं यहां इस पिंजड़े में कैद करके रखा गया हूं. मोर ने कहा कि तब से मैं यही सोचता हूं कि काश मैं कौआ होता तो खुले आसमान में मन मर्जी से उड़ तो सकता, क्योंकि केवल कौआ ही एकमात्र ऐसा पक्षी है जिसे यहां चिड़ियाघर में किसी पिंजड़े में कैद नही रखा गया है. मोर के मुँह से यह सुनकर कौआ सोच में पड़ गया कि वास्तव में सुखी कौन है?

हमारी स्थितियां भी कुछ ऐसी ही हैं, हम अपने परिवेश में व्यर्थ ही किसी से स्वयं की तुलना कर बैठते हैं और फिर स्वयं को दुखी मान लेते हैं. उस जैसे सुख पाने के लिये तनाव ग्रस्त जीवन जीने लगते हैं. सचाई यह है कि हर व्यक्ति स्वयं में विशिष्ट होता है, जरूरत यह होती है कि हम अपनी विशिष्टता पहचानें और उस पर अभिमान करें न कि किसी दूसरे से व्यर्थ की तुलना करके दुखी हों. आत्म सम्मान के साथ अपनी विशेषता को निखारना हमारा उद्देश्य होना चाहिये. अपनी उस विशेषता को अपने परिवेश में सकारात्मक तरीके से फैलाकर समाज के व्यापक हित में उसका सदुपयोग करने का हमको प्रयत्न करना चाहिये. आइये नये साल के मौके पर हम सब यह निश्चित करें कि हम दूसरो से व्यर्थ ही ईर्ष्या नही करेंगे, अपने गुणो का जीवन पर्यंत  निरंतर सकारात्मक विकास करेंगे और स्वयं के व व्यापक जन हित में अपने सद्गुणो का भरपूर उपयोग करेंगे.

 

© अनुभा श्रीवास्तव