श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक अतिसुन्दर कविता  “सूरज और तुम ……”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 36

☆ कविता  – सूरज और तुम …… ☆ 

 

डूबते हुए

सूरज ने कहा

कल फिर

वहां से छुपकर

आऊंगा तुम्हारे पास

नाहक परेशान

तुम ढ़ूढते हो

बार बार हर बार

जीवन उधर भी

सलामत रहे

इस चिन्ता में

डूबकर जाना

प्रकाश फैलाना

आर पार से झांकना

हर बार वादा निभाना

जब तुम अपने में डूबोगे

तभी तुम मुझे ढ़ूंढ़ पाओगे

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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