श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 116 ☆
☆ मुक्तक – ।। क्रोध,बुद्धि का हरण,रिश्तों का क्षरण।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
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[1]
दूसरों की गलती सजा खुद को देने का काम है।
आपका धैर्य बुद्धि विवेक हो जाता बेनाम है।।
क्रोध नुकसान पहले करताअंदाजा होता बाद में।
गुस्सा केवल एक पागलपन का दूसरा नाम है।।
[2]
हताशा की अभिव्यक्ति ही गुस्सा बन जाता है।
अहम दंभ का अंधकार गुस्सा बन जाता है।।
क्षमा करना क्षमा मांग लेना क्रोध करता खत्म।
नही तो नफरत अहंकार गुस्सा बन जाता है।।
[3]
क्रोध में व्यक्ती खुद का ही अहित करता है।
गुस्से का मूल्य भविष्य में मनुष्य भरता है।।
क्रोध की आग आंधी आपका घर नही छोड़ती।
क्रोध से हर रिश्ता बस धीरे धीरे झरता है।।
[4]
क्रोध का अपना ही एक खानदान होता है।
घृणा राग द्वेष ईर्ष्या और अपमान होता है।।
मनचाहा न होने से अनचाहा करा देता है गुस्सा।
क्रोध में सोच से परे अदृश्य नुकसान होता है।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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