श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “क़यामत एक दिन तो लाज़िमी है…” ।)
ग़ज़ल # 123 – “ क़यामत एक दिन तो लाज़िमी है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
☆
बहर में रहता मुसव्विर तेरा,
लहर में रहता तसव्वुर तेरा।
*
फ़लक पर चमक होती है तुझसे,
तुझे रोशन करता मुनव्वर तेरा।
*
क़यामत एक दिन तो लाज़िमी है,
तेरी राह देखे मुंतज़िर तेरा।
*
जो हो सके तू मुकम्मिल ग़ज़ल,
हर महफ़िल में हो मुक़र्रर तेरा।
*
तू गुम किस ख़्याल में रहता है,
तुझे ढूँढ़े आतिश दरबदर तेरा।
☆
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈