श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “सत्संगी फिजियोथैरेपी”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 194 ☆
🌻सत्संगी फिजियोथैरेपी🌻
बड़ा प्यारा सा नाम लगा और यह नाम महिलाओं में चर्चा का विषय बनता जा रहा। बदलते परिवेश में आज मनुष्यों के पास सभी प्रकार के साधन सुविधा उपलब्ध है। ऊँगली चलाते ही समान की तो बात छोड़िए, गरमा गरम भोजन भी उपलब्ध हो जाता है।
मशीनों से जूझते कंप्यूटर पर हाथ और आँखें, दिमाग में हजारों तरह की बातें, एक साथ चलती है।
कहीं ना कहीं मानव, मानव द्वारा ही निर्मित यंत्र में ऊलझता चला जा रहा है। परंतु कहते हैं नित आविष्कार ही हमें, ऊँचा उठने की प्रेरणा देता है। अनुचित दिनचर्या, बेहिसाब खान-पान और अनिद्रा के चलते सभी शिकार होते चले जा रहे हैं। घंटो मोबाइल पर समय व्यतीत हो जाता है।
परंतु स्वयं के लिए कोई समय नहीं निकल पाता। खासकर महिला वर्ग अपने लिए समय नहीं निकाल पाती है। निकाले भी कैसे यदि वर्किंग महिला है, तो घर बाहर दोनों की जिम्मेदारी और यदि ग्रहणी है तो फिर तो पूरा दिन रसोईघर पर ही लगी रहे।
बहुत ही प्यारा सा नाम डाॅ निशा फिजियोथैरेपिस्ट। क्लीनिक में उनके पास तरह-तरह की महिलाएं और पुरुषों का आना जाना। क्योंकि कहीं ना कहीं सभी को कुछ समय के बाद हाथ पैरों का दर्द ज्यादातर घुटनों, कमर का दर्द सताने लगा है।
भिन्न-भिन्न प्रकार के मशीन डॉ. निशा के हाथ अपने सभी मरीजों के लिए एक साथ कई काम करते हुए मुस्कुराते अपनी बात रखते सभी की मदद करते। किसी का व्यायाम, किसी की सिकाई, इलेक्ट्रिक मशीन, किसी को एक्यूप्रेशर तो किसी का ध्यान और सबसे बड़ी बात उनके हँसते मुस्कुराते चेहरे पर चमकती दो बड़ी-बड़ी, धैर्य के साथ देखती दो आँखें।
संतुष्टि से भरा ह्रदय, सत्संग की बातें, कहीं रिश्तो की बातें, कहीं मेहमानबाजी, कहीं घर के कामकाज, कहीं पास पड़ोसियों का मिलना- जुलना, सभी के साथ चर्चा करते-करते ईश्वर पर गहरी आस्था रखती सबका काम करते जाती।
जो भी आते सभी डाॅ निशा की तारीफ करते। सभी को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करना, उनका अपने कार्य के साथ एक जुगलबंदी हो गई थी।
डॉ निशा को आज किसी महिला ने कुदरते हुए पूछा…. आप थकती नहीं है? कितना सब कुछ करते और साथ ही साथ हम सब का मनोरंजन ज्ञानवर्धक बातें और सत्संग करते, – –
दो बड़ी बड़ी बूँदें अँखियों से उतर कर कपोलों पर आ गए। मोती जैसे आँसू को पोंछती हुई डॉ. निशा ने अपने सत्संगी फिजियोथैरेपी की बात करते हुए बताने लगी…. मैं जिस समय और वातावरण से गुजरी हूँ, सत्संग ही मेरा सहारा था। बाबा की कृपा जिन्होंने मुझे मानवता के लिए चुना।
आज के समय में दुख – दर्द देने सभी तैयार मिलते हैं। क्या अपने और क्या पराए। परंतु मैं आप सभी की सेवा कर ईश्वर के इस अनमोल उपहार को उन तक पहुंचा रही हूँ। पैसे लेकर ही सही मैं किसी के दर्द को दूर कर रही। दुख – दर्द निवारण का कारण बन गई हूं। मुझे ईश्वर ने इस नेक काम के लिए चुना। उनका मैं हृदय से वंदन करती हूँ ।
क्लीनिक में लगभग सात आठ महिलाएं एक साथ अपने-अपने कामों में लगी थी और सबसे बड़ी बात सभी की सभी शांत थीं
निशा ने हँसते हुए कहा… क्या बात है मेरे इस सत्संगी फिजियोथैरेपी को हमेशा याद रखना। प्रभु का सुमिरन सच्चे हृदय से करते रहना। संसार है दुख – सुख का आना-जाना लगा रहता है।
अपने दुखों को बुलाकर मानवता अपना कर देखो। जिंदगी बदल जाती है। किसी की सेवा करके देखिए— भगवान भी बदल जाते हैं।
चलते-चलते हँसते सभी ने कहा… इस फिजियोथैरेपी का नाम सत्संगी फिजियोथैरेपी होना चाहिए।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈