श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक अनुकरणीय एवं प्रेरक लघुकथा “भुतहा पीपल ” जो हमें अपरोक्ष रूप से पर्यावरण संरक्षण का सन्देश भी देती है। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह लघुकथा हमें कई शिक्षाएं देती है जैसे अंधविश्वास के विरोध के अतिरिक्त ईमानदारी, परोपकार, पर्यावरण संरक्षण आदि का पाठ सिखाती है। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने मनोभावनाओं को बड़े ही सहज भाव से इस लघुकथा में लिपिबद्ध कर दिया है ।इस अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 38☆
☆ लघुकथा – भुतहा पीपल ☆
गाँव के बाहर बहुत बड़ा पीपल का वृक्ष। चारों तरफ से हरी घनी छाया। संभवत सभी गाँव वालों का कहना कि यह भगवान या किसी भूत प्रेत का भूतहा पीपल है। शाम ढले वहां से कोई निकलना नहीं चाहता था। सभी अपना अपना काम करके जल्द से जल्द गाँव के अंदर आ जाते या फिर जो बाहर होते वह दिन होने का इंतजार कर दूसरे दिन आते थे।
एक प्रकार से दहशत का माहौल बन गया था। दिन गुजरते गए। गांव में अचानक एक गुब्बारे वाला आया। बहुत अधिक बारिश होने के कारण वापस जा रहा था पर नहीं जा सका। उसी पीपल के वृक्ष के नीचे खड़ा होकर बारिश के रुकने का इंतजार करने लगा।
कहते हैं कि भाग्य पलटते देर नहीं लगती। अचानक वहां पर कुछ लुटेरे आकर खड़े हो गए। जिनके पास शायद बहुत सारा रुपया पैसा, सोना चांदी था। उन्होंने देखा कि कपड़ों से फटा बेहाल मनुष्य खड़ा है। उसमें से एक ने कहा… इसे यहीं टपका दे, परंतु बाकी लोग कहने लगे… नहीं हमेशा पाप की कमाई से जीते आए हैं। आज इसे कुछ नहीं करते। इसको मालामाल कर देते हैं।
उस गुब्बारे वाले को पास बुलाकर लुटेरे ने कहा… तुम अच्छी जिंदगी जी सकते हो बड़े आदमी बन सकते हो, परंतु हमारी शर्त है… हमारी बात जिंदगी भर राज ही रहने देना। हम तुम्हें धन दौलत दिए जा रहे हैं। तुम इसका चाहे जैसा इस्तेमाल करो। गुब्बारे वाला तुरंत मान गया। गरीब बेचारा सोचता रहा। लुटेरों ने अपना सामान उठाया और चले गए।
उसी समय जोरदार बिजली कौधी और जैसे गुब्बारे वाले को ज्ञान प्राप्त हो गया। उसने सुबह होते ही पीपल के चारों तरफ साफ सफाई करके सब कचरा एकत्रित कर जला दिया और लूट का सामान जो दे गए उसे पोटली बना अपने पास रख लिया।
सुबह होते ही गाँव के लोगों का आना जाना शुरू किए। एक से दो और दो से चार बाते होते देर नहीं लगी। पूरा गाँव इकट्ठा हो गया गुब्बारे वालों ने बताया कि…. रात बारिश की वजह से मैं यहीं पर रुक गया था। रात में पीपल देव दर्शन देकर गांव की उन्नति और इसे अच्छे कामों में लगाने के लिए यह सारा सोना चांदी और रुपया पैसा दिए हैं। गांव वालों के मन से उस भुतहा पीपल का डर निकल गया। गुब्बारे वाले से रुपए लेकर गांव के पंच ने वहां पर सुंदर बाग बगीचा मंदिर बनाने का निर्णय लिया और गुब्बारे वाले को भी परिवार सहित गांव में रहने के लिए मकान दिया गया।
इस प्रकार उन लुटेरों के धन से ईमानदार गुब्बारे वाले ने सदा के लिए उस गाँव का डर मिटा दिया और अब पीपल देव के नाम से पूजा होने लगी। सभी गाँव वाले प्रसन्न और उत्साहित थे। सभी ने ईश्वर का धन्यवाद किया और अपनी गलती की क्षमा प्रार्थना की। गाँव में पर्यावरण को बढ़ावा दिया गया। गुब्बारे वाले ने सभी से कहा… कि गांव के बाहर खेतों पर एक एक पेड़ जरूर लगाएं। और वह गांव भूतहा पीपल वाला गांव की जगह पीपल देव गांव कहलाने लगा। चारों तरफ हरियाली फैल गई। सरकार ने भी उस गांव की हरियाली देख गांव को पुरस्कृत करने का फैसला किया।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश