श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है डॉ. मीना श्रीवास्तव जी द्वारा श्री विश्वास विष्णु देशपांडे जी की मराठी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद – रामायण महत्व और व्यक्ति विशेषपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 158 ☆

☆ “व्यंग्य लोक त्रैमासिकी” – संपादक – रामस्वरूप दीक्षित ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

चर्चा पत्रिका की

व्यंग्य लोक त्रैमासिकी

वर्ष १ अंक १ प्रवेशांक मई जुलाई २०२४

संपादक – रामस्वरूप दीक्षित

समकालीन व्यंग्य समूह की त्रैमासिक

ई पत्रिका

सम्पर्क [email protected]

समकालीन_व्यंग्य समूह एक व्हाट्सअप समूह है। समूह में ३०० से ज्यादा प्रबुद्ध रचनाकार देश विदेश से जुड़े हुये हैं। समकालीन सक्रिय साहित्यिक समूहों में इस समूह का श्रेष्ठ स्थान है। व्यंग्य, कहानी, कविता, साहित्यिक मुद्दों पर लिखित चर्चा, पुस्तकों पर बातें,लेखक से प्रश्नोत्तर, आदि विभिन्न आयोजनो की रूपरेखा निर्धारित है, जिसे अलग अलग स्थानों से विभिन्न साहित्य प्रेमी अनुशासित तरीके से सप्ताह भर, हर दिन अलग पूरी गंभीरता से चलाते हैं। समूह के एडमिन टीकमगढ़ से प्रसिद्ध व्यंग्यकार राम स्वरूप दीक्षित हैं। उन्हीं की परिकल्पना के परिणाम स्वरूप समूह की त्रैमासिक ई पत्रिका व्यंग्य लोक का प्रवेशांक मई से जुलाई २०२४ हाल ही https://online.fliphtml5.com/rfcmc/bbfe/index.html पर सुलभ हुआ है। फ्लिप फार्मेट के प्रयोग से प्रिंटेड पत्रिका पढ़ने जैसा ही आनंद आया। ई पत्रिका के लाभ अलग ही हैं, कोई कागज का अपव्यय नहीं, यदि टैब या फिर कम से कम मोबाईल इंटरनेट के साथ है, तो आप दुनियां में जहां कहीं भी हों पत्रिका आपके साथ है। मैने भी इसे लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर अपनी फ्लाइट के इंतजार में पहली बार पढ़ा।

श्री रामस्वरूप दीक्षित

आत्म_लोक में संपादक जी समकालीन परिदृश्य पर लिखते हैं कि रचना प्रकाशित होते ही व्यंग्यकार का दिमाग लिखने से ज्यादा छपने में सक्रिय हो जाता है, पाँच छै व्यंग्य छपने के बाद तो कोई स्वयं को वरिष्ठ से कम मानने ही तैयार नहीं। पुरखों के कोठार से स्तंभ में लतीफ घोंघी जी का व्यंग्य हो जाये इसी बहाने एक श्रद्धांजली पुनर्प्रकाशित किया गया है। अपठनीयता के इस समकाल में यह स्तंभ उल्लेखनीय है। पहला ही चयन लतीफ घोंघी को लेकर किया गया यह महत्वपूर्ण है। लतीफ घोंघी और ईश्वर शर्मा की व्यंग्य की जुगलबंदी लम्बे समय तक चली, जिसमें दोनो व्यंग्यकार एक ही विषय पर लिखा करते थे।

पन्ना पलटते ही व्यंग्य विधा पर विचार लोक स्तंभ में डॉ सेवाराम त्रिपाठी, प्रेम जनमेजय, यशवंत कोठारी और अजित कुमार राय के वैचारिक लेख हैं। प्रेम जनमेजय का आलेख व्यंग्य के आज की उलटबासियां पढ़ा, अच्छा लगा।

व्यंग्य की पत्रिका में व्यंग्य तो होने ही थे, अरविंद तिवारी, सुभाष चंदर, सूरज प्रकाश, जवाहर चौधरी, सुधीर ओखदे, अख्तर अली राजेंद्र सहगल, शशिकांत सिंह शशि और कमलेश पांडेय की व्यंग्य रचनाएं व्यंग्यलोक के अंतर्गत छपी हैं। जवाहर चौधरी की रचना खानदानी गरीब घुइयांराम वार्तालाप शैली में लिखा गया अच्छा व्यंग्य है, घुइयांराम कहते हैं कि एक बार वोट को बटन दबा देने बाद हम रुप५या किलो के सड़ा गेहूं हो जात हैं…. तुम ठहरे खानदानी गरीब तुम लोकतंत्र की आत्मा हो । ऑफ द रिकॉर्ड स्तंभ में अनूप श्रीवास्तव का शैलेश मटियानी पर संस्मरण है।कविता लोक में राकेश अचल की पंक्तियां हैं ” सबके सब हैं जहर बुझे तीरों जैसे, किसके दल में शामिल हो जाउं बेटा “। डॉ विजय बहादुर सिंह, हेमंत देवलेकर, कमलेश भारतीय, विमलेश त्रिपाठी, और पद्मा शर्मा की कविताएं भी है।लंदन के तेजेंद्र शर्मा की कहानी दर ब दर कथा लोक में ली गई है। फेसबुक लोक एक हटकर स्तंभ लगा, त्वरित, असंपादित और पल में दुनियां भर में पहुंच रखने वाले फेसबुक को इग्नोर नही किया जा सकता, ये और बात है कि इंस्टाग्राम और थ्रेड युवाओ को फेसबुक से खींच कर अलग करते दिख रहे हैं। राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी की फेसबुक वाल से माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर के पहले अंक से १७ जनवरी १९१९ के संपादकीय की ऐतिहासिक सामग्री है, तब भी राजनीति का यही हाल समझ आया। पुस्तक लोक में प्रमोद ताम्बट, शांतिलाल जैन, धर्मपाल महेंद्र जैन, टीकाराम साहू आजाद और प्रियम्वदा पांडेय की किताबों पर क्रमशः राजेंद्र वर्मा, शशिकांत सिंह शशि, मधुर कुलश्रेष्ठ, किशोर अग्रवाल और हितेश व्यास की पुस्तकों की समीक्षाएं हैं। सूचना लोक में पिछले दिनों सम्पन्न हुए साहित्यिक कार्यक्रमों की जानकारी दी गई है।

लेखक जी कहिन स्तंभ में घुमक्कड़ कहानी लेखिका संतोष श्रीवास्तव का आत्मकथ्य है। बिना पूरी पत्रिका पढ़े आपको मजा नहीं आयेगा। पेज नंबर दिये जाने थे जो चूक हुई है। यह तो हिट्स ही बतायेंगे कि पत्रिका कितनी पढ़ी गई और कहां कहां पढ़ी गई। बहरहाल इस संकल्पना की पूर्ति पर रामस्वरूप दीक्षित जी के मनोयोग तथा समर्पण की उन्हें बधाई। वे निश्चित ही अगले अंक की तैयारियों में जुटे होंगे। ईश्वर करे कि इस अच्छी पत्रिका को कुछ विज्ञापन मिल जायें क्योंकि पत्रिकायें केवल हौसलों से नहीं चलती।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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