डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं प्रदत्त शब्दों पर भावना के दोहे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 234 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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चित्र बनाया आपका, देखे स्वप्न हज़ार।
मैं तुझमें खोती गई, तू ही मेरा प्यार।।
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तुझको माना साजना, होकर भाव विभोर।
मैं दुल्हन तेरी बनी, बांँधे जीवन डोर।।
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दूर नहीं तुमसे हुए, चले गए परदेश।
आओ जल्दी तुम सजन, बना वियोगी वेश।।
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सोये नहीं दिन रात हम, स्वप्न देखते जाग।
बिन तेरे निन्द्रा कहाँ, भड़क रही है आग।।
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मैं तेरी अभिसारिका, बस तेरी है आस।
टूट रहा है स्वप्न अब, छूट रही है सांस।।
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तेरी राह निहारती , नहीं मुझे अब चैन।
*कब आआगे पीव तुम, राह देखते नैन।।
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तुम बिन तो सब रूठ गया, रूठ गया है प्यार।
बिछिया पायल कंगना, रूठा है शृंगार।।
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मोर पंख की लेखनी, लिखे भाव उद्गार।
प्रेम प्यार से लिख रहे, शब्दों की झंकार।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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