श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा  “बेशर्म । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  #38 ☆

☆ लघुकथा – बेशर्म ☆

 

“बेटी ! इसे माफ़ कर दे. आखिर तुम दोनों के पिता तो एक ही है.”

“माँ ! आप इसे माफ़ कर सकती हैं क्यों की आप सौतेली ही सही. मगर माँ हो. मगर, मैं नहीं। जानती हो माँ क्यों?”

अनीता अपना आवेश रोक नहीं पाई, “क्योंकि यह उस वक्त भाग गया था, जब आप को और मुझे इस की सब से ज्यादा जरूरत थी. उस वक्त आप दूसरों के घर काम कर के मुझे पढ़ा लिखा रही थी. आज जब मेरी नौकरी लग गई है तो ये घर आ गया.”

“यह अपने किए पर शर्मिंदा है.”

“माँ ! पहले यह हम से बचने के लिए ससुराल भाग गया था और अब वहाँ की जीतोड़ खेतीबाड़ी से बचने के लिए यहाँ आ गया. यह मुफ्तखोर है. इसे सौतेली माँ बहन का प्यार नहीं, मेरी नौकरी खीच कर लाई है.”

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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