डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “ भावना के दोहे “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 37 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
गुलमोहर
गुलमोहर को देखकर, मुस्काई थी शाम।
तपी दुपहरी जेठ की, लिख दो उसके नाम।।
चंचरीक
चंचरीक गाने लगे, धुन में अपना गान।
कलियाँ ऐसी झूमतीं, करते ही रसपान।।
अमराई
अमराई की डाल पर, कोयल गाए गान।
अमराई में बस गई, खुशियों की मुस्कान।।
कचनार
मनभावन कचनार का, आया मौसम आज।
औषधि का हर पुष्प में, छुपा हुआ है राज ।।
ऋतुराज
मनमोहक मौसम ललित, कण-कण में ऋतुराज।
अनुरागी अनुभूति का, उड़ने लगा जहाज।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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