स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 196 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

☆ 

इच्छित कार्य का सम्पादन

ययाति की

विनीत और अबूझ

वचनावली से आश्चर्य आहत थे

गालव और गरुड़।

आश्चर्य भेदन किया

ययाति ने –

मैं आपको सौंपता हूँ।

अपनी

देवकन्यासी कांतिवाली

अक्षत योनि कन्या

माधवी

जो करेगी

चार कुलों की स्थापना

और वृद्धि करेगी

सम्पूर्ण धर्म की।”

“हे। ऋषिवर

इस रूपवती गुणवती

को पाने

सुर, असुर, और मनुष्य

सभी लालायित है

आतुर हैं।”

ग्रहण करें

मेरी पुत्री

और

सिद्ध करें

अपना अभीष्ट।

जो

इससे करना चाहे

हो—

 क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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