आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – खुद को मैंने पा लिया…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 59 – खुद को मैंने पा लिया… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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आज मैंने फिर, भुजाओं में तुम्हें लिपटा लिया
अपने दिल को ख्वाब में ही, इस तरह बहला लिया
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मैं तो, तुमको देख करके झूम खुशियों से उठा
जाने क्यों तुमने मगर मिलते ही मुँह लटका लिया
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आज खाने में, तुम्हारे हाथ की खुशबू न थी
याद यूँ आयी, निवाला हलक में अटका लिया
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अपने घर वालों की यादों का करिश्मा देखिये
बूट पालिश करने वाले बच्चे को सहला लिया
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संस्कृति से कट गया है, ओहदा पाकर बड़ा
प्यार की हल्दी का छापा, शहर में धुलवा लिया
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जिस्म था मेरा, मगर इसमें न मेरी जान थी
तुमको क्या पाया कि जैसे, खुद को मैंने पा लिया
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© आचार्य भगवत दुबे
82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈