श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “एक पाती वृक्ष की, मानव के नाम…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #234 ☆
☆ एक पाती वृक्ष की, मानव के नाम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(पर्यावरण विषयक)
☆
आदरणीय मानव जी,
तुम को नमस्कार है
लिखने वाला वृक्षों का प्रतिनिधि मैं
जिसका जल जंगल से सरोकार है।
खूब तरक्की की है तुमने
अंतरिक्ष तक पहुँच रहे हो
चाँद और मंगल ग्रह से संपर्क बनाए
पहुँचे जहाँ,
वहाँकी मिट्टी लेकर आए
होना तो यह था
धरती की मिट्टी और कुछ बीज
हमारे लेकर जाते
और वहाँ की मिट्टी में यदि हमें उगाते
तो शायद हो जाती परिवर्तित जलवायु
और वहाँ भी तुम उन्मुक्त साँस ले पाते।
लगता है वृक्षों का वंश मिटाने का
संकल्प लिया मानव जाति ने
जब कि हमने उपकारी भावों से
मानव जाति के हित
आरी और कुल्हाड़ी के
सब वार सहे हँस कर छाती में।
अपने सुख स्वारथ के खातिर
हे मनुष्य! तुम अपनी आबादी तो
निशदिन बढ़ा रहे हो
और जंगलों वृक्षों की बलि
आँख बंद कर चढ़ा रहे हो,
नई तकनीकों से विशाल वृक्षों को
बौने बना-बना कर
फलदाई उपकारी वृक्षों को घर पर
अपने गमलों में लगा रहे हो।
भला बताओ बोनसाई पेड़ों से
मनचाहे फल तुम कैसे पाओगे
क्या इन गमलों के पेड़ों से
सावन के झूलों का वह आनंद
कभी भी ले पाओगे,
सोचा है तुमने वृक्षों से वनस्पति से
कितना कुछ तुमको मिलता है
औषधि जड़ी बूटियाँ
पौष्टिक द्रव्य रसायन
विविध सुगंधित फूलों से
सुरभित वातायन।
अमरुद, अंगूर आम
आँवले केले जामुन
सेब, संतरे, सीताफल
और नीम की दातुन
सबसे बड़ी बात
हम पर्यावरण बचाएँ
और प्रदूषण से होने वाले
रोगों को दूर भगाएँ।
हम हैं तो,
संतुलित सभी मौसम हैं सारे
सर्दी गर्मी वर्षा से संबंध हमारे
इस चिट्ठी को पढ़कर मानव!
सोच समझकर कदम बढ़ाना
नहीं रहेंगे हम तो निश्चित ही
तुमको भी है मिट जाना।
पानी बोतल बंद लगे हो पीने
रोगों से बचने को,
आगे शुद्ध हवा भी
बिकने यदि लगेगी
तब साँसें कैसे ले पाओगे
मानव! जीवन जीने को।
सोचो! जल जंगल वृक्षों की
रक्षा करके
तुम अपने
मानव समाज की रक्षा भी
तब कर पाओगे
और प्रकृति के प्रकोप से
विपदाओं से
खुद को तभी बचा पाओगे।
आबादी के अतिक्रमणों से हमें बचाओ
बदले में हमसे जितना भी चाहो
तुम उतना सुख पाओ
नमस्कार जंगल का
सब मानव जाति को
जरा ध्यान से पढ़ना
लेना गंभीरता से इस पाती को
चिट्ठी पढ़ना,
पढ़कर तुम सब को समझाना
और शीघ्र संदेश
सुखद हमको पहुँचाना।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈