अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 38 ☆
☆ *औरत* ☆
मैंने देखी-
बालकनी की रेलिंग पर लटकी
खूबसूरती के नए एंगल बनाती औरत,
मैंने देखी-
धोबीघाट पर पानी की लय के साथ
यौवन निचोड़ती औरत,
मैंने देखी-
कच्ची रस्सी पर संतुलन साधती
साँचेदार खट्टी-मीठी औरत,
मैंने देखी-
चूल्हे की आँच में
माथे पर चमकते मोती संवारती औरत,
मैंने देखी फलों की टोकरी उठाए
सौंदर्य के प्रतिमान लुटाती औरत,
अलग-अलग किस्से,
अलग-अलग चर्चे,
औरत के लिए राग एकता के साथ
सबने सचमुच देखी थी ऐसी औरत,
बस नहीं दिखी थी उनको-
रेलिंग पर लटककर छत बुहारती औरत,
धोबीघाट पर मोगरी के बल पर
कपड़े फटकारती औरत,
रस्सी पर खड़े हो अपने बच्चों की भूख को ललकारती औरत,
गूँदती-बेलती-पकाती
पसीने से झिजती
पर रोटी खिलाती औरत,
सिर पर उठाकर बोझ
गृहस्थी का जिम्मा बँटाती औरत,
शायद हाथी और अंधों की
कहानी की तर्ज़ पर
सबने देखी अपनी सुविधा से
थोड़ी-थोड़ी औरत,
अफ़सोस किसीने नहीं देखी
एक बार में
पूरी की पूरी औरत..!
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
बहुत सुंदर- नहीं देखी पूरी औरत।??