श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “कुछ रिश्तों के पोखर सूखे…” ।)
ग़ज़ल # 127 – “कुछ रिश्तों के पोखर सूखे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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एक साल धरा पर बीत गया,
दिल हार गया मन जीत गया।
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सधता कब सब कुछ जीवन में,
कुछ सुलझा कुछ विपरीत गया।
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कुछ रिश्तों के पोखर सूखे,
मन झरने से संगीत गया।
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बीता साल उमंग भरा था,
समय गुज़रते वो रीत गया।
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महत्व पाने की इच्छा में,
व्यर्थ जीवन व्यतीत गया।
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यमदूत सधा काल नियम से,
मेरा मन तो भयभीत गया।
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बिछड़ कर वह रहा दिल में ही,
आतिश का पर मनमीत गया।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈