श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख “जीवन यात्रा“।)
☆ कथा-कहानी # 106 – जीवन यात्रा : 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
वो एक्स और वाई क्रोमोसोम से बनता है तो प्रकृति अपनी प्रचलित विधा के अनुसार उसे एक आवास अलॉट करती है, तरल द्रव्य और अंधकारमय. वो अंधेरे से, अकेलेपन से घबराकर ईश्वर से फरियाद करता है तो सांत्वना मिलती है ईश्वर और उसके बीच की ब्रम्हांडीय भाषा में ” डरने की जरूरत नहीं है अंकुरित वत्स, ये तुम्हारी जीवनयात्रा की सबसे सुरक्षित जगह है जिसे तुम बाद में हमेशा मिस करोगे. तुम्हारी सारी जरूरतें आटोमेटिकली पूरी होती रहेंगी और तुम यहां अकेले नहीं हो. जो इंसान तुम्हारे साथ है और तुम्हें अगले कुछ महीनों carry करेगा, वो तुम्हारे जीवन का, जीवन में और जीवन के लिये सबसे ज़्यादा caring, loving, sacrificing, friendly companionship होगी. ये मेरी ही रचना है पर तुम सौभाग्यशाली हो कि मैं जिससे महरूम हूँ, वह कंपनी तुम्हें मिल रही है. इसके लिये नश्वरता आवश्यक है जो मेरे नसीब में नहीं है. मैं तो जन्म मरण के चक्र से दूर अविनाशी हूँ, अपने ब्रम्हांडीय संचालन के कर्तव्य बोध से बंधा हूं वरना कौन नहीं चाहता कि ये साथ उसे मिले. तुम अभी अंकुरित हुये हो, लगभग अचल हो, गतिशीलता के गुण धीरे धीरे विकसित होंगे प्रकृति के नियमानुसार. पहले तुम उसके साथ और वह तुम्हारे साथ रहना समझेगी,तुम्हारे साथ तारतम्यता का प्रादुर्भाव होगा जो बाद में ममता के नाम से जानी जायेगी. तुमसे साक्षात्कार की कल्पना, उसे शारीरिक मोह, सुंदरता और दर्द सबसे विरक्त कर देगी. तुम्हें तो खैर क्या मालुम पर जब पहचानने और पोषण की प्रक्रिया से गुजरते हुये तुम ध्वनि से जुड़ी अभिव्यक्ति के द्वार तक पहुंचोगे तो वह पहला ध्वनि युक्त शब्द होगा “मां “ तो डरने की जरूरत नहीं है मेरे अंकुरित अंश, मैं तो रहूंगा ही तुम्हारे साथ पर तुम मुझे महसूस नहीं कर पाओगे पर जो पहला स्पर्श तुम जानोगे, वही मां है, ये जरूर जान लेना.तुमसे गर्भनाल द्वारा linked गर्भाशय रूपी आवास ही तुम्हें जीवन और पोषण की चिंता से मुक्त रखेगा. यही वह वक्त भी है जब हर समय वो तुम्हारे साथ रहेगी.तुम्हारी जीवनयात्रा का ये सबसे सुरक्षित और चिंतामुक्त काल है.तुम्हारे landlord को तुम्हारी चिंता रहेगी पर तुम्हें पाने का एहसास, उसके अंदर प्रकृति की वह शक्ति देगा, जिसके सामने साहस, वेदना, भय, सहनशीलता बहुत बौने हो जाते हैं.तो जो तुम्हारी हलचल से मुदित होकर तुम्हें बाहर से स्पर्श करे, वह तुम्हारी जीवनदायिनी है “मां ” है ,चाहे कुछ भी हो जाये पर इस रिश्ते को गंवाना नहीं.
क्रमशः…
© अरुण श्रीवास्तव
संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈