श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनकी एक अतिसुन्दर कविता “वो बचपन”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37 ☆
☆ कविता – वो बचपन ☆
खबरदार खबरदार प्यारे बचपन
ये जहर उगलते मीडिया ये बचपन
ऊंगलियों में कैद हो गया है बचपन
हताशा निराशा में लिपटा है बचपन
गिल्ली न डण्डा न कन्चे का बचपन
फेसबुक की आंधी में डूबा है बचपन
वाटसअप ने उल्लू बनाया रे बचपन
चीन के मंजे से घायल है ये बचपन
खांसी और सरदी का हो गया जीवन
कबड्डी खोखो को भूल गया बचपन
सुनो तो कहीं से बुला दो ‘वो’ बचपन
मिले तो आनलाइन भेज दो ‘वो’ बचपन
© जय प्रकाश पाण्डेय