प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “परेशानियों से परेशान हो न…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 183 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – परेशानियों से परेशान हो न… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

रोता है क्यों तू, मुसीबत में रो न परेशानियों से परेशान हो न ।

 

कही कोई है ऐसा जिसे घेर करके परेशानियों ने सताया नहीं है?

नहीं जानता मैं कि दुनियों में है कोई, परेशानियों जिसने पाया नहीं है।

कहाँ तक हो कोई परेशान इनसे ये हैं हर जमाने के हर-एक के साथी-

रहेंगे ये हम तो चले जायेंगे कल, ये दो दिन इन्हें आँसूओं से भिगों न ॥१।

रोता है क्यों तू —

 

सदा रात औ’ दिन तो होते रहे हैं, होते हैं अब भी औ होते रहेंगे

न बदला चलन इस जमाने का, बस लोग ऐसे ही हँसते औं रोते रहेंगे ।

अँधेरे में ही तो जला दीप करते, विहँसती है बाती औ कट रात जाती-

यही जिन्दगी है लगा ही रहा है, यहाँ हर एक घर कभी हँसना या रोना ।२।

रोता है क्यों तू –

 

ये दुश्मन नहीं हैं सखा हैं तुम्हारे, तुम इनसे डरो मत, गले तो लगाओ

इन्हें आसरा दो, सहारा लो इनका, इन्हें अपनी राहों का साथी बनाओ ।

अगर तुम डरे ये डरायेंगे तुमको, जो होगा वो सब लूट लेंगे तुम्हारा

डरे बिन इन्हें अपना साथी बना लो, इन्हें रहने को साथ दो एक कोना ।३।

रोता है क्यों तू

 

परेशानियों खुद परेशान है ये तो बस चाहती है सहारा-तुम्हारा

जो इनको निभा साथ ले सीख इनसे, कभी वह रहेगा न जीवन में हारा ।

ये जितनी बुरी है, भली भी है उतनी ही, देतीं जगा आत्मविश्वास भारी

जो इनकी सहज भावना को समझ लें, ये दे जायेगीं कुछ इन्हें कुछ न होना ।४।

रोता है क्यों तू —

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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