श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल तुम हर वक्त ख़ुद से ही लड़ते रहते हो…” ।)

? ग़ज़ल # 128 – “तुम हर वक्त ख़ुद से ही लड़ते रहते हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

नसीब  सबके  कुछ  इसी तरह होते हैं,

तुम्हारी क़िस्मत में कुछ भी अजीब नहीं।

*

तुम हर वक्त ख़ुद से ही लड़ते रहते हो,

जमाने में  तुमसे बड़ा कोई रक़ीब नहीं।

*

इस महफ़िल में सब सुनाने आए खुदी को,

तुम्हारी ग़ज़ल  सुनने  कोई  अदीब नहीं।

*

इश्क़ का  अमृत चख  कर देख यारा तू,

है  आबे जमज़म  नरक की ज़रीब नहीं।

*

मुसीबत से  निकलने  तरसता  आतिश,

सिवाय फ़ना अब बची कोई तरकीब नहीं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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