श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत हैं “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 135 – मनोज के दोहे ☆

प्रिये हुआ मन अनमना, चली गई तुम छोड़।

सूना-सूना घर लगे, अजब लगे यह मोड़।।

*

अकथ परिश्रम कर रहे, मोदी जी श्री मान।

पार चार सौ चाहते,  माँगा था वरदान।।

*

गिरे हमारे आचरण, का हो अब प्रतिरोध।

तभी प्रगति के पथ चढ़ें, यही रहा है शोध।।

*

न दिखतीं अमराईयाँ, कटे वृक्ष की मेढ़।

कहाँ गईं हरियालियाँ, चाट गईं हैं भेड़।।

*

अधिक नहीं अनुपात में, हो भोजन का लक्ष्य।

अनुशासित जीवन जिएँ, यही बड़ा है कथ्य।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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