श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना हरो जन की पीर। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 203 ☆ हरो जन की पीर

शोर गुल से नींद टूट गयी, आँखें मलते हुए ज्ञानचंद्र जी चल दिये कि चलो भई लग जाओ अपने काम पर। इनकी विशेषता है कि बिना ज्ञान दान दिए इनको भोजन हज़म नहीं होता। ये सत्य है कि जब हाजमा खराब हो तो पूरे माहौल को बिगड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगता।

इधर ध्यानचंद्र जी तो अपने नामारूप हैं, ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर ध्यान योग किए बिना उन्हें चैन कहाँ। इतना शोर उनके ध्यान को भंग करने के लिए पर्याप्त था, वे योगासन छोड़कर ऐसे उठे मानो इंद्र ने इंद्रासन छोड़ा हो।

दोनों के प्रिय समयलाल जी की माँ फुरसत देवी आज पूरे सौ वर्ष की हो गयीं थी, जिससे सुबह से ही अखंड मानस पाठ की तैयारी चल रही थी इधर साधना देवी भी मगन होकर सासू माँ के जी हजूरी में जीवन बिता देने की बात छेड़ बैठीं थीं।

आजकल तो रात बारह बजे से ही जन्मदिन मनाने लगते हैं, सो इनका भी मना, केक काटा गया, फेसबुक पर फ़ोटो अपलोड हुई और लाइक का जो दौर चला वो चलता ही जा रहा है एक तो शुभ सूचना दूसरा समयलाल के मोबाइल प्रेमी बेटे बबलू ने सारे दोस्तों को टैग जो कर दिया था।

इनके यहाँ तो मेहमान बारह बजे से आने लगेगें, हाँ भाई पड़ोस का भी पूरे दो दिन का चूल न्यौता है। ज्ञानचंद्र जी मुखिया बन कर सबको समझाइश देने लगे तो ध्यानचंद्र भी कहाँ चूकने वाले थे उन्होंने पूरे अधिकार से कहा ओ बबलू बेटा जरा कड़क चाय तो लाओ और हाँ वो जो रात में मठरी और कचौड़ी बनी है उसे भी ले आना, ससुरी महक भी ऐसी थी कि रात भर सो नहीं पाए और ध्यान तो लगवय नहीं कीन्ह।

ज्ञानचंद्र जी ने भी आराम से बैठते हुए कहा अरे भाई जो लोग पूजा में संकल्प लेगें वो केवल फलाहारी ही करें। समयलाल तुम तो केवल पूजा में बैठना सारा काम हम लोग देख लेगें आखिर पड़ोसी होते किसलिए हैं।

अब ये दोनों साठा तो पाठा की कहावत को चरितार्थ करते हुए बाहर पड़े तखत पर बैठ गए। बड़ी मुश्किल से एक बजे दोपहर में गए और पंद्रह मिनट में वापस आ कर फिर से आसन जमा कर बैठे ही थे कि बबलू आया उसने कहा चाचा जी खाना खा लीजिए।

अरे पहले बच्चों को खिलाओ और हाँ कन्या का मुहँ जरूर जुठला देना, बिना इनकी पूजा कोई कार्य सिद्ध नहीं होता समझाते हुए ज्ञानचंद्र ने कहा।

ध्यानचंद्र ने माथे में बल लाते हुए कहा अब तो नवरात्रि में नौ कन्या भी नहीं मिलती, छोटे शहरों में लोग भेज भी देते हैं कन्या पूजन हेतु अष्टमी व नवमी के दिन, बाकी यहाँ तो लगता है मूर्ति रखनी पड़ेगी कन्याओं की।

अरे सब कलयुग की महिमा है, धार्मिक होते हुए मगन लाल जी ने कहा जो बड़े ध्यान से दोनों की बातें ऐसे सुन रहे थे जैसे कथा पाठ चल रहा हो।

पंडित जी का ध्यान भी इन्हीं बुजुर्गों की तरफ था। उन्होंने और जोर- जोर से मंत्र जाप शुरू कर दिया और पूरी ताकत के साथ माइक से सबको संबोधित करते हुए कहा कि सब लोग यहाँ आकर प्रणाम करें व्यास पीठ को, अपनी बात को बल देने हेतु कुछ संस्कृत में श्लोक भी पढ़ दिए, सबने भी ऐसे व्यक्त किया जैसे अर्थ समझ में आ गया हो पर सच्ची बात तो यही है कि ॐ शान्ति, शान्ति, शान्ति बस यही अच्छा लगता है क्योंकि इतना अनुभव आजतक के सत्संग से हुआ है कि इसके बाद ही कार्यक्रम पूर्णता को प्राप्त होता है फिर आरती होकर प्रसाद मिल जाता है।

सबके के साथ ये दोनों बंधु भी पहुँचे जो सुबह से ही सच्चे पड़ोसी धर्म निभा रहे थे, इनके आभामंडल की रौनक तो देखते ही बन रही थी अब तो कई दिनों तक समयलाल के यहाँ ही इनका बसेरा होगा जब तक कि चाय के साथ मिठाई व नमकीन मिलना बंद नहीं होगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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