सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत –नीलकंठी शंभु

? रचना संसार # 12 – नवगीत – नीलकंठी शंभु…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

हे नीललोहित नीलकंठी शंभु गंगाधार हो।

अक्षत चढ़ाते भक्त भोलेनाथ को स्वीकार हो।।

 *

ओंकार हो भीमा सुशोभित बाल मयंक माथ प्रभु।

हे विष्णुवल्लभ भक्त वत्सल सोम निर्गुण साथ प्रभु।।

हो सर्व -व्यापी तुम शिवाशंकर बसे कैलाश भी।

सादर नमन आशीष दो प्रभु तुम धरा आकाश भी।।

भर दो सभी भंडार गिरिधन्वा शिवं साकार हो।

 *

बम-बम त्रिलोकीनाथ जगमग है शिवाला जाइए।

शिवरात्रि ओंकारा उमापति सुख प्रदाता आइए।।

प्रभु नित्य बाजे प्रेम की डमरू हरो संताप भी।

मंगल करो भूलोक आकर के बिराजो आप भी।।

हे भूतपति हम तो खड़े चरणों प्रभो उद्धार हो।

 *

गणनाथ अभ्यंकर पुरारी भीम अनुपम आस है।

अवधूतपति पशुपति पिनाकी भूतपति उर वास है।।

अभिमान तोड़ो दुष्ट का जीवन सफल श्रीकंठ हो।

हे शूलपाणी हो कृपानिधि सोमप्रिय शिति कंठ हो।।

तांडव करें विपदा हरें दाता त्रिलोकी सार हो।

शंकर शिरोमणि प्रभु जटाधारी प्रजापति सत्य हैं।

स्वामी विरूपाक्षाय अभिनंदन करें आदित्य हैं।।

तन केसरी छाला अगोचर शक्ति भी अध्यात्म प्रभु।

नंदी बिराजे भस्मधारी प्राणदा एकात्म प्रभु।।

हो सृष्टि पालक श्रेष्ठ प्रमथाधिप शिवा त्रिपुरार हो।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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