श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “पग विद्यालय”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 198 ☆
🌻लघु कथा🌻 👣पग विद्यालय 👣
संस्कारों की शिक्षा घर से ही आरंभ हो जाती है। बच्चा जैसा देखता सुनता है। वही उसे अच्छा लगने लगता है। आजकल बढ़ते कोचिंग सेंटर, पढ़ाई का खर्च और महंगी पाठशाला सभी को समझ आने लगा है।
घर-घर की कहानी कहते इसमें कब एक वृद्धा आश्रम आ गया और जुड़ गया। पता ही नही चला।
यह केवल शहरों में ही नहीं गाँव तक पहुंच चुका है। गाँव की एक छोटी सी पाठशाला जहाँ पर सभी उम्र के बच्चों को पढ़ाया जाता है ।
अध्यापक भी गिनती में होते हैं। तेज बारिश की वजह से आज सभी एक बड़ी कक्षा में बैठे थे। अध्यापक सभी से बारी – बारी प्रश्न कर रहे थे कि– कौन-कौन बड़ा होकर क्या-क्या बनना चाहता है।
अध्यापक, संस्थापक, संपादक,लेखक, डॉक्टर, इंजीनियर मंत्री, सरपंच, कृषक, बिजनेसमैन, सेनापति, दुकानदार आदि – आदि सभी बालक अपनी-अपनी राय पसंद बता रहे थे।
मासूम सा एक बालक चुपचाप बैठा था। अध्यापक ने पूछा–क्यों? समीर क्या – – तुम क्या बनना चाहते हो।
सिर नीचे झुकते हुए उसने कहा गुरु जी मुझे पग विद्यालय खोलना है। हंसी का फव्वारा फूट पड़ा।
अध्यापक ने शांत परंतु आश्चर्य से कहा – – – यह क्या होता है और क्यों खोलना चाहते हो।
अध्यापक की समझ से भी परे था। समीर ने बड़ी ही मासूमियत से बोला– गुरू जी यह पग, पांव, पैर हैं – – जो यह कभी शिकायत नहीं करता कि मैं नहीं चलूंगा। चाहे कहीं भी जाना हो बिना थकावट के चलता जाता है।
जो हमारे अन्नदाता, किसान, सेना के जवान और जो भी निस्वार्थ हमारी सेवा करते हैं। मैं पग विद्यालय खोलकर उनकी सेवा के लिए संगठन बनान चाहता हूँ।
ऐसे पग का निर्माण करना चाहता हूँ । जो भारत की पहचान और शान बने। इस विद्यालय के सभी पग पूजनीय और वंदनीय बनकर निकालेंगे। जहाँ चलेंगे, राहों में फूल बिखरेंगे और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि— कभी कोई पग वृद्धा आश्रम, पागलखाना,रैन बसेरा या सेवा आश्रम की ओर नहीं बढ़ेगा।
पूरी कक्षा शांत हो गई। अध्यापक की सोच से कहीं हटकर। समीर अपनी बात कहता जा रहा था।
तालियां बजनी आरंभ हो गई। अध्यापक ने आगे बढ़ कर समीर को सीने से लगा लिया।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈