श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बरसात…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 61 ☆ बरसात… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

टपकती है बूँद

होंठों पर छुअन सी

यादों में लिपटी हुई बरसात।

 

बाँह पकड़े

कल तलक जो

चल रही थी नाव

लहर चंचल

कूदती है

भुलाकर सब घाव

 

आँख बैठा मूँद

माझी तन जलन की

मन के आँगन में घिरी बरसात।

 

ढीठ नाला

छू रहा है

पाँव देहरी के

पाँव भारी

हो गये हैं

घर की महरी के

 

हो रहा है मेल

धरती गगन खनकी

चूड़ियों में बज रही बरसात।

 

फुदकती है

बूँद चिड़िया

खेत पकड़े हाथ

आँजती है

झील काजल

बादलों के साथ

 

नदिया का आँचल

हुआ मैला है जो

बाढ़ लाकर धो रही बरसात।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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