श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक बाल कविता – “वो भी क्या दिन थे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 178 ☆

☆ बाल कविता – वो भी क्या दिन थे ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

सुबह सैर को जाते

नदी में खूब नहाते

 तैरा करते जी भर

थक हार के घर आते।

मोबाइल से हीन थे ।।

वो भी क्या दिन थे ।।

 *

शाम ढले घर आते

दादाजी  संग बतियाते

खेला करते दिन भर

कभी ना हम सुस्ताते ।

कई मित्र अभिन्न थे ।।

वे भी क्या दिन थे ।।

 *

गप्पी भी मारा करते

भूत प्रेत से ना डरते

खेलखेल में सब कोई 

आपस में ही लड़ते।

दोस्त नहीं, जिन थे।।

वो भी क्या दिन थे।।

 *

पेड़ देख कर जाते

आपस में स्पर्धा करते

कलमडाल जैसे ही

खेल कई खेला करते।

मस्ती में ही लीन थे।।

वो भी क्या दिन थे।।

 *

खेतों पर भी जाते थे

नई चीजें खाते थे

ना कोई मोलभाव था

मुफ्त तोड़ लाते थे।

उनके हम पर ऋण थे।।

वह भी क्या दिन थे।।

 *

दिवाली खूब मनाते

नए कपड़े सिलवाते

ईदी भी सबसे लेते

सेवइयां भी खाते।

हम शैतानी के जिन्न थे।।

वो भी क्या दिन थे।।

 *

खेल कई खेला करते

आपस में ही लड़ते

क्षण भर में मिलते

बिल्डिंग पर चढ़ते ।

राग द्वेष से भिन्न  थे।।

वो भी क्या दिन थे।।

चना चबैना लाते

मिल बांट कर खाते

नित नई चीजें पाकर

खुशियां खूब मनाते।

रिश्ते हमारे अभिन्न थे।।

वो भी क्या दिन थे।।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

09-09-20200

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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