श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 122 ☆

।। हाइकु ।। ☆ ।। क्रोध/गुस्सा।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

।। वर्ण 5=7=5 पंक्ति अनुसार।।

[1]

क्रोध आग है

खुद का घर जले

बने   दाग है।

[2]

बुद्धि  हरण

गुस्से में   धैर्य नष्ट

दोस्ती क्षरण।

[3]

दंभ से क्रोध

घृणा ईर्ष्या ओ द्वेष

होए न बोध।

[4]

क्रोध शत्रु है

स्वयं का नुकसान

जैसे मृत्यु है।

[5]

अधीरता है

गुस्से का ये कारण

न वीरता है।

[6]

क्रोध तोड़ता

सुख शांति हरता

प्रेम जोड़ता।

[7]

क्रोध अहित

अनचाहा विनाश

करे व्यथित।

[8]

क्रोध आंधी है

घृणा द्वेष जनक

ये बर्बादी है।

[9]

क्रोध करना

होती है बदनामी

रोग बढ़ना।

[10]

क्रोध कुटुंब

बढ़ते एक साथ

अहम दंभ।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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