श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “पितर-पक्ष में आ गए…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 101 – पितर-पक्ष में आ गए… ☆
☆
पितर-पक्ष में आ गए, पुरखे घर की ओर।
मुंडन होते देखते, नदी जलाशय भोर।।
☆
व्याकुलता उनकी बढ़ी, पितर तुल्य भगवान।
पहन मुखौटा जी रहे, कलयुग के इंसान।
☆
जल तर्पण सब कर रहे, पितृ पक्ष का शोर।
जब भूखे प्यासे रहे, नहीं दिया कागोर।।
☆
खिड़की से तब झाँकते, रखा न अपने साथ।
अर्थी पर जब सो गए, पीट रहे थे माथ।।
☆
अब परलोकी हो गए, करते इस्तुति गान।
जीवित रहते कब मिला, हमको यह सम्मान।
☆
स्वर्ग लोक से झाँकते, स्वजनों की यह भीर।
पिंडदान करते फिरें, गया-त्रिवेणी तीर।।
☆
छत पर अब कागा नहीं, आकर करते शोर।
श्राद्ध-पक्ष में निकलती, पर उनकी कागोर ।
☆
गायें अब तो घरों से, सभी गईं हैं भाग।
पंछी सारे उड़ गए, दिखें न कोई काग।।
☆
प्रेम नेह सम्मान के, छूट रहे नित छोर ।
निज स्वार्थों से दूर अब, चलो नेह की ओर।।
☆
सुख-दुख में सब एक हों, मानवता की डोर।
संस्कृति अपनी श्रेष्ठ है, पकड़ें उसका छोर ।।
☆
सत्य सनातन में छिपा, मानव का कल्यान।
जीव प्रकृति जन देश-हित,छिपा हुआ विज्ञान ।।
☆
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002
मो 94258 62550
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈