डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  समसामयिक  “ भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 38 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  

 

मुझको फागुन में सरस, आती प्रिय की गंध।

गाल गुलाबी देखकर ,कर लेती अनुबंध।

 

होली के हर रंग में, मिला प्यार का रंग।

रंग बिरंगी हो गई, लगी पिया के अंग।

 

पिचकारी में भर रहा, पल पल का ये प्यार।

निकलेगी हर रंग से,  खुशियों की बौछार।

 

साजन से खुशियाँ सभी, साजन से हर रंग

डूबे रंग गुलाल में, सजनी साजन संग

 

फगुआ गाये फाग जब, बजे नगाडे ढोल।

झूम झूम सब गा रहे, मीठे तीखे बोल।

 

फगुहारे  मस्ती करें, हमजोली के संग।

होली की अनुभूति से, फड़क रहे सब अंग।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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