श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “हम खुद को ही समझ न पाए…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #239 ☆
☆ हम खुद को ही समझ न पाए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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कितनी भूलें, कितनी भटकन
बहके कितनी बार विगत में
सोच-सोच कर चिंतित है मन
कैसे अब उनको बिसराएँ।
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बीत गए दिन कितने अनगिन
मृगतृष्णाओं के मररुथल में
खुशियों को, पाने के भ्रम में
गये उलझते ही, दलदल में,
रहे भुलावे में जीवन भर
हम खुद को ही समझ न पाए
सोच-सोच कर…
.
अहंकारमय बुद्धि का व्यापार
रहे करते अपनों में
नापतौल शब्दों की चलती रही
समय बीता सपनों में,
सहज सरल माधुर्य भाव धारा में
अब कैसे बह पायें
सोच-सोच कर…
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कभी वासनाओं ने घेरा
लोभ कभी सिर पर मँडराया
कभी क्रोध में दूजों के सँग
अपने को भी खूब जलाया,
समय गँवाया जो प्रमाद में
नहीं उन्हें वापस दुहराएँ
सोच-सोच कर…
.
आत्ममुग्ध हो, खुद अपने से
रहे अपरिचित, सारा जीवन
मृगछौना मन, रहा भटकता
कस्तूरी की ले कर तड़पन,
है तलाश, बाहर-बाहर तो
अन्तर का सुख कैसे पाएँ
सोच-सोच कर…
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈