श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “विस्तार है गगन में…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 206 ☆ विस्तार है गगन में… ☆
खेल जीतने के लिए की गयी चालाकी ,अहंकार, अपने रुतबे का गलत प्रयोग, गुटबाजी, धोखाधड़ी ये सारी चीजें दूसरे की नज़रों में गिरा देती हैं। भले ही लोग अनदेखा कर रहे हों किंतु आप उनकी नज़रों से गिरते जा रहे हैं। इसका असर आगामी गतिविधियों में दिखेगा। जब सच्ची जरूरत होगी तो कोई साथ नहीं देगा।
ईमानदार के साथ लोग अपने आप जुड़ने लगते हैं ,जो भी उसका विरोध करता है उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है। पहले सामाजिक बहिष्कार होता था अब डिजिटल संदेशों के द्वारा बायकाट की मुहिम चला दी जाती है। जनमानस की भावनाओं के आगे उसे झुकना पड़ता है।
जिस तरह भक्त और भगवान का साथ होता है ठीक वैसे ही आस्था और विश्वास का भी साथ होता है। जब हम किसी के प्रति पूर्ण आस्था रख कोई कार्य करते हैं तो अवश्य ही सफल होते हैं। अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पूर्णमनोयोग से, गुरु के प्रति मन वचन कर्म से जिसने भी निष्ठा रखी वो अवश्य ही विजेता बन आसमान में सितारे की तरह चमका।
बिना आस्था के हम जीवन तो जी सकते हैं पर संतुष्ट नहीं रह सकते कारण ये कि हमें जितना मिलता है उससे अधिक पाने की चाह बलबती हो जाती है। ऐसे समय में आस्थावान व्यक्ति स्वयं को संभाल लेता है जबकि केवल लक्ष्य को समर्पित व्यक्ति राह भटक जाता है और धीरे- धीरे मंजिल उससे अनायास ही दूर हो जाती है।
जीवन में आस्थावान होना बहुत आवश्यक है आप किसी भी शक्ति के प्रति आस्था रखिए तो तो आप ये महसूस करेंगे कि उसकी शक्ति आपमें समाहित हो रही है।
ईश्वर में विश्वास ही, जीवन का आधार।
प्रेम भाव चलता रहे, सफल सुखद परिवार।।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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