प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “दुनियां में अकेले हैं…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 187 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – दुनियां में अकेले हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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दुनियाँ में अकेले हैं नहीं कोई हमारा, तकदीर के मारों का भला कौन सहारा ?
सरिता ने बुझाई मुझे जीवन की पहेली, देती रही हैं हौसला बस लहरें अकेली ।
दिखता जिन्हें है दूर का भी पास किनारा ।।१।।
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दुनियाँ में अकेले हैं
थक के हों चूर, ओठों में होंगी नहीं आहें ये पग न डगमगायेंगे चलते हुये राहें
मिलती उसी को जीत जो मन से नहीं हारा ।।२।।
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दुनियाँ में अकेले
कहते हैं उसे राह दिखाते हैं सितारे, चलता चले आगे कभी हिम्मत न जो हारे
सबसे बड़ा दुनियाँ में है अपना ही सहारा ।।३।।
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दुनियाँ में अकेले
आ पहुंचे यहाँ तक जो तो फिर देर कहाँ है ? पाना है जिसे वो तो सभी पास यहां है।
देती है मुझे हर घड़ी मंजिल ये इशारा ।।४।।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈