श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भोर का संदेश…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 64 ☆ भोर का संदेश… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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एक जलती अँगीठी सा
सूर्य धरकर भेष
ले खड़ा पूरब दिशा में
भोर का संदेश ।
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कुनकुनी सी धूप
पत्ते पेड़ के उजले
जागकर पंछी
दाना खोजने निकले
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नदी धोकर मुँह खड़ी
तट पर बिखेरे केश।
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पर्वतों के बीच
घाटी धुंध में लिपटी
रात चुपके से
कोने में जा सिमटी
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सितारे लौटे घरों को
चाँद अपने देश।
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मंदिरों की ध्वजा
फूँके शंख पुरवाई
पाँखुरी पर फूल की
इक बूँद अलसाई
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लिख रही दिन के लिए
है नियति के आदेश ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈